
जय माँ शारदे , जय माँ शारदे..
निहित खड़ा हु, मुझको वर दे
वर दे! वर दे! वर दे! वर दे !
मै अज्ञानी मेरी झोली ,ज्ञान से भर दे !
भर दे! भर दे! भर दे! भर दे!
हे माँ मुझको तू वर दे! वर दे!
ऊर में तम भरा है, नैनों में तृष्णा
भ्रमित है जग सारा,अंधकार में सना
हर तरफ तम ही तम है,
हर ह्रदय में गम है,
इधर उधर भटक रहा इंसान
ढूंढ़ता रौशनी के निशान.....
इस अंधकारमय संसार को अपनी
ज्ञान ज्योति से प्रकाशित कर दे !
हे माँ हर तरफ ज्ञान का उजाला कर दे
कर दे! कर दे! कर दे! कर दे!
हे माँ मुझको तू वर दे! वर दे!
मै निरा अज्ञानी हु, बुधिहीन प्राणी हु
अज्ञान की निशा में बिचरता हु
अन्धकार ही अंधकार करता हु....
आया हु शरण तेरी हे माँ
तू मुझको शरण अपने दर दे......
मेरी इस तिमिरमय ह्रदय को
तू अपने वीणा का ज्ञानमय मधुर स्वर दे
स्वर दे ! स्वर दे! स्वर दे! स्वर दे!
ये दुर्बल मन मेरा , ज्ञान धारा से निर्मल कर दे !
माँ निरमल कर दे , निर्मल कर दे !
तू अपने वीणा का ज्ञानमय मधुर स्वर दे!
हे मेरी माँ तू मुझे ज्ञान का वर दे ! वर दे!
Ye kavita to bahut hi achi likhi h tumne...bt isse b achi likhi ja sakti ti last para shan daar h....bt first 2 para itne ache ni h..
ReplyDeletema saraswati ko mera pranam...