Friday, May 11, 2012
मुद्दा इतना है ,अच्छे कल के लिए, बस मै आज को नहीं जी पाता हु.....
तुम आओ तो सही, मै तुम्हे सबकुछ बताता हु....
मुद्दा ज़रा संगीन है, आराम से तुम्हे समझाता हु.....
बात सबेरे की है , मै यु ही जा रहा था सड़क पे ...
जो देखा मंज़र वही का वही , तुम्हे मैं सुनाता हु.....
एक मजमा सा लगा था, वहाँ अफरातफरी मची थी ...
उन दहशतगर्द चीखो से मै अन्दर तक दहल जाता हु.....
खून से लतफत था बचपन वहाँ, जवानी छटपटाती हुई..
बुढ़ापा देख उन्हें बेचैन, सोचता है मै यहाँ कहाँ जाता हु...
सीधे पैर खड़े होने से पहले ही किताबो से लडखडाता...
खेल समझने से पहले,इम्तिहां कहता मै इसे उलझता हु...
जवानी दफ्तर में सिस्कारिया मरती है बड़े जोर जोर से...
कहने को रोटी और कपडे के सिवा कहा कुछ कमा पाता हु.....
परिंदे अच्छे है अपना आशियाना तो मय्सर है उन्हें कम से कम...
तिकने जुटाते-२ अरसा हुआ, राते तो मै सड़क पे ही बिताता हु......
बुढ़ापे ने बिलखते हुए कहा, आज भी बस सपनो के महल है...
ज़मीन का बिछौना बना, आसमां की चादर ओढ़ सो जाता हु....
अब आदत सी हो गयी है ,नींद भी आने लगी है अच्छी खासी....
पर याद कर उस तूफानी बारिश को मै आज भी कंपकपाता हु......
कितना कुछ बदल गया इस दरमया क्या बताऊ तुम्हे दोस्त ...
नाते सारे छुट गए और अपने रिस्तो से भी अब मै कतराता हु.......
बस इतनी सी थी कहानी सड़क पे,सोचा मैंने गौर से आया समझ...
मुद्दा इतना है ,अच्छे कल के लिए, बस मै आज को नहीं जी पाता हु.....
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