Thursday, October 20, 2011

बस इतना सा ही है फ़साना, इतना ही यार की इश्क का नगमा है








नज़रे हटे भी तो कैसे, सामने इतना खुबसूरत जो समां है......
चेहरे पे एक बिखरी हुए लट, मासूम चश्मो पे चश्मा है........



होठो पे एक कातिल सी मुस्कराहट कहती है फ़साना कोई ........
इशारा है, समझ सको तो समझ लो दिल में आखिर क्या है........


एक सादगी है आभा पे बिखरी बिखरी सी, निगाहों में इनायत
क्या कहे, देख ये नज़ारा दिल में ज़वा होते कितने ही अरमा है......


भवों को सिकोर के गुस्सा दिखाते है, कभी पलके झुका के रज़ा
कभी होठो को दातों में दबाते है, हर अदा में कुछ ना कुछ बया है......


सुन के बाते मेरी सुर्ख गुलाबी हो गए है गाल औ' आँखे शरारती
अंगूठे से ज़मीन कुरेदना, खुदा जाने ये भी उनकी कोई नई अदा है.......


ये महज़ तस्वीर नहीं इस तस्वीर में ही तक़दीर छुपी है किसी की
बस इतना सा ही है फ़साना, इतना ही यार की इश्क का नगमा है .......

Monday, October 10, 2011

नाते छुटने लगे, आखिर वो अब बेरोजगार है ..





ना मुरव्वत है ना मेरी जिंदगी में प्यार है......
ना कोई कहने को अपना अज़ीज़ यार है ......

वक़्त का मारा हु यारो, क्या बताऊ तुम्हे
जिंदगी मेरी बस एक लाइलाज अजार है .......

कितना तन्हा, अकेला हु मै इस भीड़ में
जिन्दा हु तो बस, किसी का इंतज़ार है.........

कहा जाऊ, हर दरबाजा बंद है मेरे लिए
किसी को जरुरत नहीं मेरी, ना दरकार है ......

हर लब पे शिकायत है, इनायत कही नहीं
गफलत है जिंदगी मेरी, बिलकुल बेकार है........

अपने भी अपने नहीं, सपने भी सपने नहीं
हर तरफ बस नाकामी, हर लब पे इनकार है .....

कल तलक आँखों का तारा था, आज कहते है
आवारा है, नकारा है, बेकार है, बीमार है..........

अंधेरे में तो हमसाया भी साथ छोड़ देता है
नाते छुटने लगे, आखिर वो अब बेरोजगार है .......


PS : बस अँधेरा छटने भर की देर है, रोशनी होगी
ये तो दुनिया का दस्तूर है औ, यही संसार है

सुन के खबर उनके मरने की रूह तक मै सिहर गया ........





सुरों का चमन था ,देखो आज कैसा उजड़ गया......
लफ्ज़ भी रोये,अलफ़ाजो को भी अनाथ कर गया......

गमगीन गमगीन है समां सारा ,कैसा बिराना सा
दोस्त तो रोये बहुत, टूट रकीबो का भी सबर गया ......

जिसके हर एक कता पे आह भरते थे लाखो
आज देखो, वही लाखो आँखों में पानी भर गया.........

अब वो नगमे भी गए और वो अंदाज़ भी न रहा,
आज जैसा सारा का सारा गुलिस्ता बिखर गया........

गुनगुनाती थी दिल की आवाज़ कानो में बरसो से
सुन्न सी पर गयी है काने,जब इनमे ये खबर गया.....

एक दौर था गजलो का,एक जमाना था नगमो का
अब न गजल है ना नगमे,वो दौर आखिर किधर गया.....

जहा से भी गुज़रे वो गलज़े और नगमे गुजने लगी
वक़्त का खेल देखो, आज वो शख्स ही गुजर गया.......

दिल से एक आह सी निकाल जाती, जिनके नगमे पे
आज वही जाते जाते, बस एक ठंडी सी आह भर गया ......

जिसके होठो की थिरक दिलो को धड़का जाती थी कभी,
सुन के खबर उनके मरने की रूह तक मै सिहर गया ........

Wednesday, October 5, 2011

कुछ भी नहीं मेरे पास, कम से कम जीने की कोई वजह तो दो




कभी मांगते हो यह तो दो, तो कभी कहते हो वह तो दो....
चाहिए क्या तुम्हे सोच लो जिंदगी में किसी को जगह तो दो....


दिल में तो हजारो बाते होती है, कितने अफसाने गूजते है
किसी के लिए खास कुछ है गर,इक बार उससे कह तो दो....



हम तो कब से निगाहों ही निगाहों में कह रहे है,कोई समझे तो,
हम तो कब से बेक़रार बैठे है, बस कोई इशारा कोई सह तो दो....



ना दौलत ना शोहरत ना शोहबत ना मुरव्वत ना मोहबत ना नफरत,
कुछ भी नहीं मेरे पास, कम से कम जीने की कोई वजह तो दो....

Tuesday, October 4, 2011

इबादत में उसकी बस किसी दिल को शाद करना...




जीने का कोई तरीका नया तुम इजाद करना,
किसी बेवफ़ा से ना प्यार तुम इसके बाद करना...


आज़रे- इश्क गमो के खार के सिवा कुछ नहीं
इस मर्ज़ से दूर रखे, तुम इतनी फरियाद करना...


हो सके तो ज़ेहन से निकाल ही देना ख्याल मेरा
फिर भी आये ख्याल तो कभी-कभी याद करना


मेरा तो क्या है,मैंने बहुत रंग देखे है जिंदगी के
मेरी खातिर तुम खुद को ना कभी बर्बाद करना.....


मजहब तो उलफत में है, नफरत में कुछ भी नहीं
किसी फायदे की खातिर,कभी मत जेहाद करना.....


दिल में खुदा है, किसी इमारत या खंडर में नहीं...
इबादत में उसकी बस किसी दिल को शाद करना...

Monday, October 3, 2011

फिक्र मत करो, यहाँ सारा इंतजाम हो जायेगा.. ....






फिक्र मत करो, यहाँ सारा इंतजाम हो जायेगा.. ....
तुम आओ तो सही, तुम्हारा काम हो जायेगा.....

बस दो चार दिन की तकलीफ है, सब्र रखो ज़रा,
बस ये निपट जाये, फिर सब आराम हो जायेगा....

अगर हो कोई गिला-शिकवा तुम भी कह लो
जहा इतने सही,वहा इक औ' इलज़ाम हो जायेगा......

बहुत कोशिश की, अन्दर की बात अन्दर ही रहे,
बस इतना होगा, अब ये सब सरेआम हो जायेगा......

इसीलिए कहते है शायद,नेकी से दूर रहना ही अच्छा
मदद करने निकला था, नाहक ही बदनाम हो जायेगा.....

Saturday, October 1, 2011

निकला था तब तो अच्छी खासी धुप थी, पहुचाते पहुचाते शाम हो गयी......
रास्ता मुश्किल ना था, पर मंजिल से पहले ही हर सड़क जाम हो गयी....

फासला भी कुछ खास ज्यादा ना था, ना ही बहुत बड़ा हुजूम ही था.....
बस हम ही फंस के पिछड़ते गए, और आगे ये दुनिया तमाम हो गयी....

अब तो हर मंजर हर भीड़ में लोग तमाशा ढूढते फिरते है , क्या बताये...
आलम ये है, लोगो का बस दिल बहलाने भर को मुन्नी बदनाम हो गयी..

जमघट अब दो ही जगह लगते है,सिनेमा के पर्द्दे पे या क्रिकेट के मैदान में ...
एक बार लोग सड़क पे क्या उतरे ,सता के गलियों में हलचल सरेआम हो गयी...

हजारो मरे कभी बम से, कभी महगाई के गम से, कभी नेताओ के सितम से...
पर इतनी कुर्बानिया,इतनी शहादत पक्ष और पर्तिपक्ष महज़ इलज़ाम हो गयी....

बहुत जड़ो जहद है जिंदगी में, कभी दो पल का भी चैन-ओ-सकून नहीं मिला,.
आओ बैठे कही,दो चार पुरानी बाते करे,लो दोस्त ये शाम तुम्हारे नाम हो गयी...

वक़्त के दायरों से भी बड़ी,हमारे रिश्ते की मियाद है




सबसे पहले तुम हो, बाकी सब तुम्हारे बाद है......
जब मिले थे हम,वो शाम मुझे आज भी याद है.....

चुप-चुप से थे दोनों,थोड़े अनजाने अनजाने से
आज भी इन अदाओ में, वही पुराना एह्तियाद है....

आज भी वही रौनक चेहरे पे, आँखों में वही हया
बदली नहीं तुम ज़रा भी, जान के ये दिल शाद है.....

गुजरते वक़्त के साथ औ' भी खुबसूरत हो गयी हो.....
तुम्ही से है जन्नत,तुम से ही मेरी जिंदगी आबाद है......

वक़्त आये या जाये, जिंदगी रहे या खत्म हो जाये.......
कुछ रिश्ते इन मायनो से बिलकुल अलग, आज़ाद है ....

वक़्त के हाथो में तकदीर होती है, ऐसा कहते है लोग
वक़्त के दायरों से भी बड़ी,हमारे रिश्ते की मियाद है....