Friday, January 27, 2012

माँ शारदे के चरणों में एक वंदना





जय माँ शारदे , जय माँ शारदे..
निहित खड़ा हु, मुझको वर दे
वर दे! वर दे! वर दे! वर दे !
मै अज्ञानी मेरी झोली ,ज्ञान से भर दे !
भर दे! भर दे! भर दे! भर दे!
हे माँ मुझको तू वर दे! वर दे!

ऊर में तम भरा है, नैनों में तृष्णा
भ्रमित है जग सारा,अंधकार में सना
हर तरफ तम ही तम है,
हर ह्रदय में गम है,
इधर उधर भटक रहा इंसान
ढूंढ़ता रौशनी के निशान.....
इस अंधकारमय संसार को अपनी
ज्ञान ज्योति से प्रकाशित कर दे !
हे माँ हर तरफ ज्ञान का उजाला कर दे
कर दे! कर दे! कर दे! कर दे!
हे माँ मुझको तू वर दे! वर दे!


मै निरा अज्ञानी हु, बुधिहीन प्राणी हु
अज्ञान की निशा में बिचरता हु
अन्धकार ही अंधकार करता हु....
आया हु शरण तेरी हे माँ
तू मुझको शरण अपने दर दे......
मेरी इस तिमिरमय ह्रदय को
तू अपने वीणा का ज्ञानमय मधुर स्वर दे
स्वर दे ! स्वर दे! स्वर दे! स्वर दे!
ये दुर्बल मन मेरा , ज्ञान धारा से निर्मल कर दे !
माँ निरमल कर दे , निर्मल कर दे !
तू अपने वीणा का ज्ञानमय मधुर स्वर दे!
हे मेरी माँ तू मुझे ज्ञान का वर दे ! वर दे!

Sunday, January 22, 2012

यही वजह है अब तुम्हारी बेतुकी बात भी अच्छी लगती है........



कभी कभी बिना रोशनी की रात भी अच्छी लगती है.............
सिकुरती कंपकपाती सर्दी की बरसात भी अच्छी लगती है.........




बहुत दिन तक गजलो की गहराई गूंजती रही कानो में
शायद इसीलिए अब सोहबत औ' जमात भी अच्छी लगती है.......


आपा-धापी दाँव-पेच की फिराक से कोशो दूर रहे ताउम्रहम
मगर ये कैसा असर,अब सतरंज की बिसात भी अच्छी लगती है......



हर बात में मतलब ढूंढते ढूंढते जिंदगी बेमतलब हो गयी
यही वजह है अब तुम्हारी बेतुकी बात भी अच्छी लगती है........

Tuesday, January 17, 2012

अंदाज़ तो देखो, आग लगा के फिर पानी से शिकार करते है.........









तन्हा तन्हा अकेले अकेले खुद ही विचार करते है......
कभी खुद पे खफा हो सोचते है,ये सब बेकार करते है.......


कुछ अजीबो गरीब सा ही है, नया नया शौक चढ़ा है
आज कल मुद्दतो यु ही हम किसी का इंतजार करते है ......


वक़्त भी कटता ही नहीं, घडी की सुइया भी रेगती है
कोई आया तो नहीं,सोच दरवाजे पे नज़र बार बार करते है......


नींद भी कुछ कम ही आती है अब,ख्याल कुछ ज्यादा से
कुछ अलग अलग से ख्याल, हर बात में इसरार करते है.......


कुछ लोग कहते है बीमार है , कुछ कहते है इश्के आजार
बड़ी मुस्किल है, ना वो ऐतबार करते है ना इनकार करते है .........

वो भी शायद हमारी हालत का लुफ्त उठाते है बड़े चाव से
अंदाज़ तो देखो, आग लगा के फिर पानी से शिकार करते है.........

Monday, January 9, 2012

किसी को बुरा ना लगे इसलिए अब खुद से मजाक करते है.....






बुरे है हम शायद , हर बात बेहिचक बेबाक करते है...
अपने तो अपने है,हम गैरो से भी इतेफाक करते है......



जलसा है , मजलिस है,हर तरफ ही हुजूम लोगो का
वहाँ हो के भी हम, खुद पे तन्हाई का नकाब करते है.......



हमने तो तुम्हे अपना मान लिया था एक मुद्दत पहले से
बस तुम खुश रहो इसकी खातिर खुद को खाक करते है........



दिल डरा डरा सा रहता है,कौन कब क्या बुरा मान जाये
किसी को बुरा ना लगे इसलिए अब खुद से मजाक करते है.....

Thursday, January 5, 2012

बज़्म में नज़्म होता है,दिल की आह तन्हाई में ही निकलती है.






सूरज भी शांत, निगाहे लाल होती है जब शाम ढलती है......
वक़्त के साथ जिंदगी भी देखो क्या क्या रूप बदलती है.......


रेशा रेशा कतरा कतरा तिल तिल आखरी बूंद तक रोशनी
दिन में कौन पूछता है उस शमां को जो सारी रात जलती है.......


खाता खेलता मस्त रहता था, ना कोई शौक ना कोई आरज़ू
मुरव्वत सी थी जिस से आजकल वही तन्हाई बहुत खलती है.....



हमें हमेशा से आदत रही हँस के गले लगाने की,वही दिखाता है....
बज़्म में नज़्म होता है,दिल की आह तन्हाई में ही निकलती है......