Sunday, January 22, 2012

यही वजह है अब तुम्हारी बेतुकी बात भी अच्छी लगती है........



कभी कभी बिना रोशनी की रात भी अच्छी लगती है.............
सिकुरती कंपकपाती सर्दी की बरसात भी अच्छी लगती है.........




बहुत दिन तक गजलो की गहराई गूंजती रही कानो में
शायद इसीलिए अब सोहबत औ' जमात भी अच्छी लगती है.......


आपा-धापी दाँव-पेच की फिराक से कोशो दूर रहे ताउम्रहम
मगर ये कैसा असर,अब सतरंज की बिसात भी अच्छी लगती है......



हर बात में मतलब ढूंढते ढूंढते जिंदगी बेमतलब हो गयी
यही वजह है अब तुम्हारी बेतुकी बात भी अच्छी लगती है........

4 comments:

  1. Well, first sorry for not commenting on your poems for a long time. Well you know, ever since went out of Delhi, I couldn't access comment on your blog since it wasn't allowed from the office.

    And slowly the habit of commenting went away.

    Will try to do it regularly from now onwards.

    This one as always is great! But a little small I would say.

    ReplyDelete
  2. I must say Its one of the best ghazal that you have written in the recent times.
    Mujhe bahut pasand aayi.

    हर बात में मतलब ढूंढते ढूंढते जिंदगी बेमतलब हो गयी
    यही वजह है अब तुम्हारी बेतुकी बात भी अच्छी लगती है

    Wah !

    ReplyDelete
  3. @katyayan यही वजह है अब तुम्हारी बेतुकी बात भी अच्छी लगती है

    ReplyDelete
  4. this poem is my favorite poem vikas.....it one of ur worderful poet.........which actualy suits my personality...........loved it

    ReplyDelete