Tuesday, January 17, 2012
अंदाज़ तो देखो, आग लगा के फिर पानी से शिकार करते है.........
तन्हा तन्हा अकेले अकेले खुद ही विचार करते है......
कभी खुद पे खफा हो सोचते है,ये सब बेकार करते है.......
कुछ अजीबो गरीब सा ही है, नया नया शौक चढ़ा है
आज कल मुद्दतो यु ही हम किसी का इंतजार करते है ......
वक़्त भी कटता ही नहीं, घडी की सुइया भी रेगती है
कोई आया तो नहीं,सोच दरवाजे पे नज़र बार बार करते है......
नींद भी कुछ कम ही आती है अब,ख्याल कुछ ज्यादा से
कुछ अलग अलग से ख्याल, हर बात में इसरार करते है.......
कुछ लोग कहते है बीमार है , कुछ कहते है इश्के आजार
बड़ी मुस्किल है, ना वो ऐतबार करते है ना इनकार करते है .........
वो भी शायद हमारी हालत का लुफ्त उठाते है बड़े चाव से
अंदाज़ तो देखो, आग लगा के फिर पानी से शिकार करते है.........
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Awesome ghazal.
ReplyDeleteAlmost at par with Faiz ahmed faiz.
simple yet so deep :)
loved it.
At this point of time, no better lyrics to define my condition than this one.
Well Katy made my job easier because there are really no words to define this awesome piece. There are too many lines that I liked it in this one.
ReplyDeletePlus, the fact that you recited it to us made it more interesting! It's always fun to hear the poem from the poet himself :)