Monday, January 9, 2012

किसी को बुरा ना लगे इसलिए अब खुद से मजाक करते है.....






बुरे है हम शायद , हर बात बेहिचक बेबाक करते है...
अपने तो अपने है,हम गैरो से भी इतेफाक करते है......



जलसा है , मजलिस है,हर तरफ ही हुजूम लोगो का
वहाँ हो के भी हम, खुद पे तन्हाई का नकाब करते है.......



हमने तो तुम्हे अपना मान लिया था एक मुद्दत पहले से
बस तुम खुश रहो इसकी खातिर खुद को खाक करते है........



दिल डरा डरा सा रहता है,कौन कब क्या बुरा मान जाये
किसी को बुरा ना लगे इसलिए अब खुद से मजाक करते है.....

4 comments:

  1. yaar mazak to is post ki picture lag rahi hai.:D

    awesome picture. But i dunno towards whom this ghazal is directed? anyway its awesome as usual
    Arz hai :

    kahin na kahin koi dil to toota hoga, jo tumhara dil gamgeen hai.
    soch lete ishq karne se pehle,
    saza to milegi jab zurm itna sangeen hai.

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  2. Well I have already commented elsewhere that the last line "किसी को बुरा ना लगे इसलिए अब खुद से मजाक करते है....." is simply brilliant.


    But regarding the 4th line. Shouldn't it be "वहाँ होके भी हम खुद की तन्हाई पर नकाब करते हैं"?

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  3. thanks..but as u see..in forth line there is a pause on hum.....it in two phrases?

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    1. Haha, well you would know better. I just thought it was a typo :)

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