Thursday, October 20, 2011

बस इतना सा ही है फ़साना, इतना ही यार की इश्क का नगमा है








नज़रे हटे भी तो कैसे, सामने इतना खुबसूरत जो समां है......
चेहरे पे एक बिखरी हुए लट, मासूम चश्मो पे चश्मा है........



होठो पे एक कातिल सी मुस्कराहट कहती है फ़साना कोई ........
इशारा है, समझ सको तो समझ लो दिल में आखिर क्या है........


एक सादगी है आभा पे बिखरी बिखरी सी, निगाहों में इनायत
क्या कहे, देख ये नज़ारा दिल में ज़वा होते कितने ही अरमा है......


भवों को सिकोर के गुस्सा दिखाते है, कभी पलके झुका के रज़ा
कभी होठो को दातों में दबाते है, हर अदा में कुछ ना कुछ बया है......


सुन के बाते मेरी सुर्ख गुलाबी हो गए है गाल औ' आँखे शरारती
अंगूठे से ज़मीन कुरेदना, खुदा जाने ये भी उनकी कोई नई अदा है.......


ये महज़ तस्वीर नहीं इस तस्वीर में ही तक़दीर छुपी है किसी की
बस इतना सा ही है फ़साना, इतना ही यार की इश्क का नगमा है .......

1 comment:

  1. Well this one is really sweet. I can always learn a lot from you on how to write a romantic poem :)

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