हर सोहबत सुनी, सारा माहौल मरा मरा सा रहता है .....
कुछ उचटा उचटा कुछ उखाड़ा-उखाड़ा सा रहता है.....
ना जाने क्यों आजकल जी भरा भरा सा रहता है........
मौत और जिंदगी के बिच का सफ़र भर है सारा
जाँ तो कब की निकल गयी है, बस जरा सा रहता है......
ना मजिल,ना मजलिस में,ना नतीजे ना कोशिश में
कही भी जी नहीं लगता, सब कुछ उजड़ा सा रहता है
अपने पराये, दोस्त दुश्मन सब के सब फिक्रमंद से है
हर सोहबत सुनी, सारा माहौल मरा मरा सा रहता है .....
एक मनहूसियत, मुर्दापन फैला है सारी आबो हवा में
इन सब के बावजूद यहाँ इंसान हर पल जिन्दा सा रहता है...
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