Monday, December 12, 2011

लम्हे-वत्सल से पहले भी तुम्से मै इज़ाज़त मांगता हु........




ना तो शहादत ना ही मै इबादत मांगता हु.......
मै तो बस तुम्हारे नज़रे इनायत मांगता हु.........



कोई शक शुबहा ना रखना मेरी तरफ से
कभी ना बिगड़े जो ऐसी नियत मांगता हु.......



तुम्हारे एक नज़ारे-मुरवत की आरजू क्या की मैंने
खुदा भी कहने लगे मुझसे,मै ज़न्नत मांगता हु.........



इन आँखों को कोई नज़ारा पसंद नहीं आता अब
बस इन निगाहों में तुम्हारी ही सूरत मांगता हु.........



खुदा जो पूछे अगर मुझसे मेरी हसरत कोई
कहूँगा,इन आँखों में बस एक शरारत मांगता हु......



तुम्हारी बंदगी,तुम्हारी इबादत गर खुदा से बगावत है
तो सच है हर दुआ में मै ऐसी ही बगावत मांगता हु....



कही तुम बुरा ना मान जाओ मेरी किसी बात का
लम्हे-वत्सल से पहले भी तुम्से मै इज़ाज़त मांगता हु........

1 comment:

  1. This one is also brilliant I would say. And well as you have seen, recently I have also started trying my luck in writing poems. So your poems become a kind of role model to follow. So, keep them coming and keep experimenting :)

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