निकला था तब तो अच्छी खासी धुप थी, पहुचाते पहुचाते शाम हो गयी......
रास्ता मुश्किल ना था, पर मंजिल से पहले ही हर सड़क जाम हो गयी....
फासला भी कुछ खास ज्यादा ना था, ना ही बहुत बड़ा हुजूम ही था.....
बस हम ही फंस के पिछड़ते गए, और आगे ये दुनिया तमाम हो गयी....
अब तो हर मंजर हर भीड़ में लोग तमाशा ढूढते फिरते है , क्या बताये...
आलम ये है, लोगो का बस दिल बहलाने भर को मुन्नी बदनाम हो गयी..
जमघट अब दो ही जगह लगते है,सिनेमा के पर्द्दे पे या क्रिकेट के मैदान में ...
एक बार लोग सड़क पे क्या उतरे ,सता के गलियों में हलचल सरेआम हो गयी...
हजारो मरे कभी बम से, कभी महगाई के गम से, कभी नेताओ के सितम से...
पर इतनी कुर्बानिया,इतनी शहादत पक्ष और पर्तिपक्ष महज़ इलज़ाम हो गयी....
बहुत जड़ो जहद है जिंदगी में, कभी दो पल का भी चैन-ओ-सकून नहीं मिला,.
आओ बैठे कही,दो चार पुरानी बाते करे,लो दोस्त ये शाम तुम्हारे नाम हो गयी...
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