Monday, October 10, 2011

सुन के खबर उनके मरने की रूह तक मै सिहर गया ........





सुरों का चमन था ,देखो आज कैसा उजड़ गया......
लफ्ज़ भी रोये,अलफ़ाजो को भी अनाथ कर गया......

गमगीन गमगीन है समां सारा ,कैसा बिराना सा
दोस्त तो रोये बहुत, टूट रकीबो का भी सबर गया ......

जिसके हर एक कता पे आह भरते थे लाखो
आज देखो, वही लाखो आँखों में पानी भर गया.........

अब वो नगमे भी गए और वो अंदाज़ भी न रहा,
आज जैसा सारा का सारा गुलिस्ता बिखर गया........

गुनगुनाती थी दिल की आवाज़ कानो में बरसो से
सुन्न सी पर गयी है काने,जब इनमे ये खबर गया.....

एक दौर था गजलो का,एक जमाना था नगमो का
अब न गजल है ना नगमे,वो दौर आखिर किधर गया.....

जहा से भी गुज़रे वो गलज़े और नगमे गुजने लगी
वक़्त का खेल देखो, आज वो शख्स ही गुजर गया.......

दिल से एक आह सी निकाल जाती, जिनके नगमे पे
आज वही जाते जाते, बस एक ठंडी सी आह भर गया ......

जिसके होठो की थिरक दिलो को धड़का जाती थी कभी,
सुन के खबर उनके मरने की रूह तक मै सिहर गया ........

1 comment:

  1. Well I haven't been a regular listener of Jagjit ji, but whenever I did listen to him, it has been one amazing experience.

    I was really really saddened to hear about his death. And this ghazal of yours is really a great tribute to the maestro.

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