Monday, October 10, 2011

नाते छुटने लगे, आखिर वो अब बेरोजगार है ..





ना मुरव्वत है ना मेरी जिंदगी में प्यार है......
ना कोई कहने को अपना अज़ीज़ यार है ......

वक़्त का मारा हु यारो, क्या बताऊ तुम्हे
जिंदगी मेरी बस एक लाइलाज अजार है .......

कितना तन्हा, अकेला हु मै इस भीड़ में
जिन्दा हु तो बस, किसी का इंतज़ार है.........

कहा जाऊ, हर दरबाजा बंद है मेरे लिए
किसी को जरुरत नहीं मेरी, ना दरकार है ......

हर लब पे शिकायत है, इनायत कही नहीं
गफलत है जिंदगी मेरी, बिलकुल बेकार है........

अपने भी अपने नहीं, सपने भी सपने नहीं
हर तरफ बस नाकामी, हर लब पे इनकार है .....

कल तलक आँखों का तारा था, आज कहते है
आवारा है, नकारा है, बेकार है, बीमार है..........

अंधेरे में तो हमसाया भी साथ छोड़ देता है
नाते छुटने लगे, आखिर वो अब बेरोजगार है .......


PS : बस अँधेरा छटने भर की देर है, रोशनी होगी
ये तो दुनिया का दस्तूर है औ, यही संसार है

1 comment:

  1. Well you know Vikas I have always been a big fan of your poems and this time as well you have not disappointed me. Wait for a couple of days and I shall be posted my poem soon.

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