Monday, September 26, 2011

कता एक खता




कल तक ना था शराब में इतना नशा,ये तो नशा ही कुछ और है.....
जाम तो कितने पीये ,तेरे आँखों से पीने का मज़ा ही कुछ और है.....
तेरे निगाह की तो हर एक अदा पे पहले से ही कुर्बान है दिलो-जान....
होठो पे कातिल मुस्कराहट उसपर यु शर्माना,ये अदा ही कुछ और है....

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जब अंधेरा छंट जाता है, हर चीज़ साफ़ नज़र आती है.....
तेरी इस बात में, मुझे एक उम्मीद साफ़ नज़र आती है....
खुदा के दरबार में, हर सर सजदे में खुद ही झुक जाता है.....
तुम्हारी इस अदा-ए-इबादत में, एक जिद साफ़ नज़र आती है.....
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पानी अर्थात जल तो जीवन है.जीवन से डरना कैसा.....
जीवन खुद में एक परीक्षा है, फिर इस से आह भरना कैसा...
हार जीत ये तो महज विचारो के भेद भाव भर है.......
फिर बादलो की छाया को रात कह उजाला करना कैसा..........
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हर सुबह सुहानी होती है , पर एक पहर के बाद शाम भी ढलनी चाहिए ....
ये उम्र ही बहकने की है, पर किसी मोर पे तो जिंदगी संभलनी चाहिए .....
जब माहौल ही सर्द हो, चीजों का जम जाना बहुत लाज़मी सी बात है .....
सिर्फ सतह पे पानी काफी नहीं, दिलो में जमी हुए बर्फ पिघलने चाहिए ....
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कहने को तो मै यहाँ हु, पर मुझको ही मालूम नहीं मै कहाँ हु,
दुनिया बहुत ही ज़ालिम है,इसके हर ज़ुल्म को मै चुपचाप सहा हु.....
अब तो हर कदम पे डरा डरा सहमा सहमा रहता हु मै, क्या करू.......
कैसे लौटू अब, बहुत दूर चलने के बाद पंहुचा हु वहां, मै आज जहाँ हु......

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