Wednesday, September 28, 2011

शायद आपने खुद के गुनाहों की मै सजा हु.




ना कोई जुर्म हु मै, ना ही कोई खता हु........
सच है, फिर भी मै रातो को जागता हु........

कल भी अकेला था, आज भी अकेला हु,
इसीलिए अक्सर मै भीड़ से भागता हु,.......

कोई कहता पागल है, कोई कहता आवारा,
मुझे खुद नहीं मालूम आखिर मै क्या हु........

ढूढता फिरता हु अपना ही पता यहाँ वहाँ,
कोई तो बता दो, इस शहर में मै नया हु.........

अब ना तो जीने की ख्वाहिश है,ना ख्वाब,
जीते-जी ही मर गया,जब से सुना मै बेवफ़ा हु.....

तेरा हर इल्जाम,हर तोहमत मंजूर है मुझे,
शायद आपने खुद के गुनाहों की मै सजा हु.....

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