खता इतनी,ना मिलने वाली चीज़ को चाह लिया.....
ना किसी के मसौरा किया ना सलाह लिया....
बस देखा उसे, उसी पल असीरे-निगाह लिया....
ताउम्र खिदमत में काट दी हमने जिनकी
एक दुआ मयसर, बदले में केवल आह लिया.....
आंशु चार बहाए, दो पल ख़ामोशी में गुजारा
इन्ही रस्मो में , हमने अपनों को थाह लिया...
सूद ब्याज का ये दस्तूर बड़ा ही ख़राब है
दिल लिया,ब्याज में जिस्मो-जां उगाह लिया.....
कुदरत भी नाराज़ है, ज़माने को भी ऐतराज़ है
खता इतनी,ना मिलने वाली चीज़ को चाह लिया.....
very sweet poem................
ReplyDelete