Wednesday, February 22, 2012

तुमसे किया था जो वादा, बस वो निभाता रहा.....





वक़्त के साथ जख्म और भी गहराता रहा...
लहूलुहान था जिगर,होठ से मुस्कुराता रहा....


महफ़िल तुम्हारी थी, गमगीन कैसे होने देता
बज़्म रमता गया,मै अपना फ़न दिखाता रहा....



जो करीबिया थी, हमारे तुम्हारे दरमिया कभी,
लोग जुड़ते गए तुमसे और मै दूर जाता रहा.....



तड़पा बहुत तुम्हारी याद में, आंसू भी बहाए
देख हमारी हालत ऐसी, तुम्हे मज़ा आता रहा...



ना ज़ीने की ख्वाहिश है,ना मरने की इज़ाज़त
घाव दिखे ना इसलिए बस निशान मिटाता रहा...



ना चेहरे पे सिकन थी,ना मेरे माथे पे सिलवट
तुमसे किया था जो वादा, बस वो निभाता रहा.....

2 comments:

  1. i already told u....one of the best of urs...
    really enjoyed reading this poem...
    however ur last week each poem is best....
    really gud yaar maje agaye.....matlb tumne kya soch kar ye poems likhi h muje ye to ni pata bt muje inn poems me bahut depth lagti h...

    ReplyDelete
  2. It's awesome yaar! And well I think I am not qualified enough to be able to comment on poems, because i find almost all of them equally awesome!

    ReplyDelete