अब वो साँचा कहाँ , कहाँ खुदा अब ऐसी चीज़ बनाते है...
तुम्हारे होठो को पंखुरी गुलाब कहू, गुलाब इतराते है....
तुम्हारे इस आँखों को कमल कहू ,कमल शरमाते है ......
एक बार तुम्हारी जुल्फों को घटा क्या कहा था हमने
तब से अब तलक बादल बस खुशी से हमें भिगाते है .....
तुम्हारी अंगराई अलसाई सुबह में खिलते फुल सी है,
इतना सुनना भर था, बस फिर फुल भी कहाँ मुरझाते है...
तुम्हारा यु नजरो का झुकाना, उसपे ये कातिल मुस्कान
आधे घायल हुए, कुछ तो बिन औज़ार क़त्ल हो जाते है...
अब मिसाल भी ढूंढे तुम्हारी तो कहा से, तुम्ही बताओ.....
अब वो साँचा कहाँ , कहाँ खुदा अब ऐसी चीज़ बनाते है...
Bas majaa hi aa gaya ise padh kar to!
ReplyDeletePhir maine apni vaali bhi poori kar daali :D
क्या बात है?
ReplyDeletewhat's a humor!
thanks..........
ReplyDeleteyaar aaj shayad sb thk h tumhare blog me....
Deletebahaut dino se iss post pe comment karna cha raha ta me..bt aaj sai time mila muje...
ye poem meri thnkng ke hisab se tuhari best poem h...
isme koi shak ni h muje...
kuch ek ajib si kash makash h iss poem me....