Monday, February 27, 2012

कोशिश ऐसी है मेरी,आजकल खुद अपना पता ढूंढ़ता हु...




रोज़ तुमसे करने को, एक नयी इल्तजा ढूढ़ता हु.....
किया है गुनाहे-मोहब्बत, उसी की सजा ढूढता हु......


अब तो बस हर अल्फाज़ में इलज़ाम दिखाता है
अपने गुनाहों का मसौदा, मै आता-जाता ढूढता हु.....



इंसानियत और इंसानों से बस अब मन भर गया
इसीलिए शायद आजकल तनहइयो में वफ़ा ढूढता हु....



किसी माहौल,किसी सोहबत में अब दिल लगता नहीं
आजकल हर नज़र हर अंदाज़ में कुछ नया ढूंढ़ता हु...



अगला पिछला सब कुछ, बस मै भूल जाना चाहता हु....
कोशिश ऐसी है मेरी,आजकल खुद अपना पता ढूंढ़ता हु...

1 comment:

  1. no Doubt another good one yaar....pata ni vikas aisi kya baat h tumhari kavitaon me jo mere dil ko chu jati h jbse tumne kavita likhna shuru kis h tbse mene yehi dekha h ki tumhari kavita me shabd tumhare or bhav mere dil ke hote...ye co-incidence h kya jo b h muje ni pata bt....seriously i a big big A.C. of ur poems....

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